Tuesday, 30 August 2016

भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे

                                        भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥
                                       जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥
                                  जय महिषविमर्दिनिजय शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥
                                              जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥
                                           जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥
                                                 एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥
हे वरदायिनी देवि! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट करने वाली और अनन्त फल देने वाली देवि। तुम्हारी जय हो! हे शुम्भनिशुम्भ के मुण्डों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे मुष्यों की पीडा हरने वाली देवि! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ॥1॥ हे सूर्य-चन्द्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान देदीप्यामान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुरका शोषण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥2॥ हे महिषसुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥3॥ सशस्त्र शङ्कर और कार्तिकेयजी के द्वारा वन्दित होने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलने वाली गङ्गारूपिणि देवि! तुम्हारी जय हो। दु:ख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवि! तुम्हारी जय हो, जय हो॥4॥ हे देवि! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन करानेवाली और दु:खहारिणी हो। हे व्यधिनाशिनी देवि! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवाच्छित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवि! तुम्हारी जय हो॥5॥
जो कहीं भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं॥6॥
भगवती के इस स्तोत्र की रचना व्यास जी ने की

Tuesday, 23 August 2016

जय जय भैरवि प्रस्तुत गीत गोसाओनिक वंदना थिक

जय जय भैरवि प्रस्तुत गीत गोसाओनिक वंदना थिक जे मिथिला मे घर घर मे गायल जायत छैक | एहि गीतक रचनाकार महाकवि विद्यापति छथि |
पसुपति अर्थात महादेवक अर्धांग्नी जिनका सं दैत्य डरायत छनि ओहि भगबती शिवानी कें जय हो | हे भगबती हमरा सुन्दर बुद्धिक वरदान दिअ | अहाँक चरण मे अनुगति भ’ हमरा सद्गति भेटत | ओ भगबती जे राति-दिन मृतकक आसन अर्थात सवासन पर विराजमान छथि ,जिनका चरण चंद्रमणि सं अलंकृत छनि ,जे कतेको दैत्य के मारि क’ मुँह मे मलि दैत छथिन तथा कतेको के कुर्रा जका उगलि दैत छथिन | अहाँक रूप पिंडश्याम अछि आ आँखि लाल लाल | ओ ऐना लगैत छैक जेना मेघ मे लाल लाल कमल फुलायल हो | तामसे कट कट करैत अहाँक दांतक प्रहार सं दुनू ओठ पांडुर फूल जकाँ लाल भ’गेल अछि, ओहि पर सोनितक फेन बुलबुलामय अछि | अहाँक चरणक नुपुर सं घन घन संगीतक स्वर बहरा रहल अछि | हाथ महक कत्ता हन हना रहल अछि | अहाँक चरणक सेवक विद्यापति कवि कहि रहल छथि जे हे माँ अपन संतान के नहि बिसरू |

कुछ यादें हैं




























































































































                                                            कुछ यादें हैं