Wednesday, 28 November 2012

SHIKAYAT HAI ???????












बेदर्द ज़माने से बस इतनी ही शिकायत है
क्यूँ पत्थर की मूरत को यूँ खुदा बना डाला 
वो खुद ही परेशां है अपनी मुजबूरियों पे 
क्यूँ कर के दुआ उसको आँखों में बसा डाला 
उससे तो बेहतर है पत्थर के सनम अपने 
वो नफरत तो करते है वादों से मुकरते है 
पत्थर तो पत्थर है कब सुनता,कुछ कहता है 
क्यूँ जोड़ के हाथो को माथे पे बिठा डाला 
क्यूँ करके दुआ उसको आँखों में बसा डाला ...
माथे पे शिकन सी है आँखों में उदासी है 
इंसान की रूहे तो जन्मो से प्यासी है 
ये ऐसे ही तरसती है मोहब्बत को तरसती है   
क्यूँ तोडके इंसान को पत्थर का बना डाला 
क्यूँ करके दुआ उसको आँखों में बसा डाला ...

No comments:

Post a Comment